________________
(
८३ )
वायुकायिक जीव वैक्रिय शरीर धारण कर अपना कार्य समाप्त कर लेता है तथा वैक्रिय शरीर को छोड़ना चाहता है और औदारिक शरीर में प्रवेश करने की चेष्टा करता है उस समय वैक्रिय शरीर के बल से औदारिक शरीर को पाने के लिए प्रवृत्त होता है । इस प्रकार वैक्रिय की प्रधानता के कारण उसी नाम से व्यवहार होता है, औदारिक नाम से नहीं होता है। यह वे क्रियमिश्र शरीर काययोग है।।
____ जहाँ पर कामण या औदारिक के साथ वैक्रिय मिश्रित रहता है उसको वैक्रियमिश्र कहा जाता है। कार्मण के साथ मिश्रता देव और नारकियों की अपर्याप्तावस्था में प्रथम समय के अनन्तर रहती है। दोनों बादर पर्याप्त और वैक्रिय लब्धि सम्पन्न पंचेन्द्रिय तिर्यच व मनुष्यों के वैक्रिय के आरम्भकाल में तथा वैक्रिय के परित्यागकाल में औदारिक के साथ मिश्रता है। वे क्रियमिश्र रूप काय के साथ योग-प्रवृत्ति को वे क्रियमिश्रकाययोग कहते है।
___ कार्मण और वैक्रिय के स्कन्धों से उत्पन्न वीर्य के साथ योग-प्रवृत्ति को वैक्रियमिश्र काययोग कहते हैं। ०२.०२० आहारक काययोग की परिभाषा आहारकशरीरकायप्रयोगः आहारकशरीरपर्याप्त्या पर्याप्तस्य ५।
पण्ण० प १६ । सू १०६८ । टीका चतुर्दशपूर्व विदा तथाविधकार्योत्पत्तौ विशिष्टलब्धिषशाद् आह्रियते निर्वय॑ते इत्याहारकम्, अथवाऽऽह्रियन्ते गृह्यन्ते तीर्थकरादिसमीपे सूक्ष्मा जीवादवः पदार्था अनेनेत्याहारकम् xxx । तदेष कायस्तेन योग आहारककाययोगः ।
-कम० भा ४ । गा २४ । टीका आहारकशरीरकायप्रयोग आहारकशरीर की पर्याप्ति से पर्याप्त जीव के होता है ।
चतुर्दश पूर्वधर के द्वारा उस प्रकार के कार्य सामने आ जाने पर विशिष्ट लब्धि के बल से जिस ( लघुशरीर) का आहरण अर्थात निष्पादन किया जाता है वह आहारक है। अथवा तीर्थ कर आदि के समीप में जिसके द्वारा सूक्ष्म जीवादि पदार्थ आहरण अर्थात् ग्रहण किये जाते हैं वह आहारक है, इस रूप काय के साथ योग-प्रवृत्ति को आहारककाययोग कहते हैं। -०२.०२१ आहारकमिश्न काययोग की परिभाषा
आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगः आहारकादौदारिकं प्रविशतः, एतदुक्तं भवति-यदा आहारकशरीरीभूत्वा कृतकार्यः पुनरप्यौदारिक गृह णाति तदा यद्यपि मिश्रत्वमुभयनिष्ठं तथाप्यौदारिके प्रवेश आहारकबलेनेत्याहारकस्य प्रधानत्वात् तेन व्यपदेशो नौदारिकेणाहारकमिश्रमिति ६। एतच्च सिद्धान्ताभिप्रायेणोक्तं, कार्मग्रंथिकाः पुनर्वै क्रियस्य प्रारम्भकाले परित्यागकाले च क्रिय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org