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आहारकशरीर नामकर्म के उदय से असंयम के परिहार तथा सन्देह की निवृत्ति के लिए प्रमत्तविरत (छठे गुणस्थानवर्ती ) मुनि के आहारक शरीर होता है ।
स्वयं में सन्देह होनेपर जिस शरीर के द्वारा केवली के पास जाकर सूक्ष्म अर्थों का आहरण ( ग्रहण ) करता है, उस शरीर के द्वारा होनेवाले योग को आहारक काययोग कहते है
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आहारयमुत्तत्थं विजाण मिस्लंतु अपरिपुण्णं तं ।
जो तेण संपजोगो
आहारयमिस्साजोगो सो ॥ - गोजी० गा २३६
आहारक शारीर जब तक अपरिपूर्ण अर्थात् अपर्याप्त रहता है तब तक उसको आहारक मिश्र कहा जाता है उसके द्वारा होनेवाले योग को आहारकमिश्र काययोग कहते हैं।
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२०३६ कार्मण काययोग का लक्षण
कम्मेव य कम्मभवं कम्मइथं जो दु तेण संजोगो ।
कम्मयका जोगो
इगिषिगतिगसमयकालेसु ॥ - गोजी० गा २४०
कर्मों को ही या कार्मणशरीर नामकर्म के उदय से होनेवाले काय को काम काय कहते हैं । इस काय के द्वारा होनेवाले योग को कार्मणकाययोग कहते हैं । यह योग एक, दो या तीन समय तक होता है ।
.०५ परिभाषा के उपयोगी पाठ
.१ वर्ण - गन्ध-रस - स्पर्श
.०५१ द्रव्ययोग की परिभाषा के उपयोगी पाठ
.०१ कण्हलेसाणं भंते ! कतिवण्णा, कति गन्धा, कइरसा, कइफासा पन्नत्ता ? गोयमा ! दव्वलेसं पडुश्च पंचपण्णा, जाव अट्ठभासा पन्नता x x x । मणजोगे, बइजोगे, उफासे, कायजोगे अट्ठफासे ।
- भग० श १२ । उ ५ । सू ११७
द्रव्य योग- द्रव्यमन, द्रव्य वचन और द्रव्य काययोग पाँच वर्ण, दो गंध, पाँच रस वाले है । परन्तु द्रव्य मनोयोग और द्रव्य वचन योग चतुःस्पर्शी है तथा द्रव्य काययोग अष्टस्पर्शी है।
.०२ पुद्गल भी वर्ण-गंध-रस-स्पर्शी है अतः द्रव्ययोग पुद्गल है ।
पोग्गत्थिकाए णंभंते ! कतिपण्णे ?
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कतिगंधे, कतिरसे, कतिफासे गोयमा ! पंचवण्णे, पंचरसे, दुगंधे, अट्ठफासे । भग० श २ । उ १० । सू १२६ पुद्गल भी वर्ण-गंध-रस, स्पर्शी है अतः द्रव्ययोग पुद्गल है ।
.०३ द्रव्य योग पुद्गल है अतः पुद्गल के गुण भी द्रव्ययोग में है ( पोग्गलस्थिकाए ) रूपी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए, लोगदन्वे ।
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