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निव्वाणगमणकाले केवलिणोद्धनिरुद्धजोगस्स। सुहमकिरियाऽनियहि तइयं तणुकायकिरियस्स ॥ तस्सेवय सेलेसीगयस्स सेलोव्व निप्पकंपस्स। वोच्छिन्नकिरिय मप्पडिवाई झाणं परमसुक्कं ॥
-ठाण० स्था ४।उ २।सूाटीका में उद्धत निर्वाण के समय केवली के मन और वचन योगों का सम्पूर्ण निरोध हो जाता है तथा काययोग का अर्ध निरोध होता है। उस समय उनके शुद्धध्यान का तीसरा भेद 'सुहुमकिरिए अनियट्टी' होता है और सूक्ष्मकायिकी क्रिया-उच्छ वासादि के रूप में होती है ।
उस निर्वाणगामी जीव के शैलेत्व प्राप्त होने पर, सम्पूर्ण योग निरोध होमे पर भी शुद्धध्यान का चौथा भेद 'समुच्छिन्न क्रियाप्रतिपाती' होता है, यद्यपि शेलेत्व की स्थिति मात्र पाँच ह्रस्व स्वराक्षर उच्चारण करने समय जितनी होती है। .०२१८ जोगर्व ( योगवत् ) -उत्त० अ ३४।गा २७, सूय० श्रु १।अ २राउ १।गा ११ शुभ प्रवृत्ति वाला।
जययं विहराहिजोगवं अणु पाणा पंथा दुरुत्तरा। अणुसासणमेव पक्कमे, वीरेहिं सम्मंपवेइयं ॥
-सूय० श्र १शअ ।उ १|गा १ .०५ परिभाषा(के उपयोगी पाठ .०१ बीर्यान्तरायक्षयक्षयोपशमसमुत्थलब्धि विशेषप्रत्ययमभिसन्ध्यनभि-सन्धि पूर्वमात्मनो वीर्य योगः xxy ।
-ठाण० स्था ३।उ शसू १२४ टीका वीर्यान्तराय कर्म के क्षय, क्षयोपशम से निष्पन्न लब्धि विशेष को योग कहते हैं । .०२ लेश्या-सहित वीर्य-पराक्रम योग है
xxx स्पन्दनारूपं यथासंभवं सूक्ष्मबादरपरिस्पन्दरूपक्रियात्मक, एतदेव च सलेश्यं वीर्यमुक्तस्वरूपं योगसंचमुच्यते !
-पंचश्वे. भा ३ गा ४ाटीका।पृ० ७२१ सूक्ष्म-बादर परिस्पन्दनात्मक रूप क्रिया व सलेशी वीर्ययुक्त स्वरूपको योग कहते हैं । .०३ योग-परिणाम जीव-परिणाम का भेद
जीवपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! दसविहेपण्णत्ते । तंजहा-गतिपरिणामे १ इदियपरिणामे २ कसायपरिणामे ३ लेसापरिणामे ४ जोगपरिणामे ५ उवजोगपरिणामे ६ णाणपरिणामे ७ दंसणपरिणामे ८ चरित्तपरिणामे ९ वेदपरिणामे १०।,
-पण्ण० प १३ सू ६२६।पृ० २२६
-ठाण• स्था १०।सू १०
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