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.०२१५ सेसदुजोगेसु ( शेषद्वियोग )
- गोक• गा ५४६ शेष अन्त के दो योग-औदारिक मिश्र और कार्मण ।
अडवीसदु हारदुगे सेसदुजोगेसु छक्कमादिल्लं ।
वेदकसाये सवं पढमिल्लं छक्कमण्णाणे ॥ योग के आधार पर आदि के छः बन्धस्थानों की सत्ता रहने वाले योग औदारिकमिश्र और कार्मण-शेषद्वियोग। .०२१६ एयजोगसमाउत्तो ( एतत्योगसमायुक्त) --उत्त० अ ३४ गा २२ अर्थात इन योगों से सहित ।
पंचासवप्पवत्तो, तीहि अगुत्तो छसुं अविरओ य । तिव्वारंभपरिणओ, खुड्डो साहस्सिओ णरो॥२१॥ गिद्ध सपरिणामो, णिस्संसो अजिइदिओ । एयजोगसमाउत्तो, किण्हलेसं तु परिणमे ॥ २२॥
-उत्त० अ ३४ागा २१, २२ पाँच आस्रवों द्वारों में प्रवृत्ति करने वाला, तीन गुप्तियों से, अगुप्त ( आत्मा का गोपन न करने वाला ) छह काया में अविरत (छह काया की विराधना करने वाला), तीव्र भावों से आरंभादि करने वाला, क्षुद्र, साहसिक, (बिना विचारे काम करने वाला) निर्दयता के परिणाम वाला, नृशंस ( क्रूर )-अजितेन्द्रिय ( इन्द्रियों को वश में न करने वाला) इन योगों से युक्त मनुष्य कृष्णलेश्या के परिणाम वाला होता है।
णीयावित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले। विणीयविणए दंते, जोगवं उपहाणवं ।। २७॥ पियधम्मे दढधम्मे, अवज-भीरूहिएसए । एयजोग-समाउत्तो. तेउलेसं तु परिणमे ॥ २८॥
-उत्त० अ ३४।गा २७, २८ नम्रवृत्ति वाला ( अहंकार रहित ), चपलता रहित, माया रहित, कुतुहल आदि न करनेवाला, परम विनय भक्ति वाला, इन्द्रियों का दमन करनेवाला, स्वाध्यायादि में रत रहनेवाला, उपधानादि तप करनेवाला, धर्म में प्रेम रखने वाला, धर्म में दृढ रहने वाला, पाप से डरने वाला, सभी प्राणियों का हित चाहनेवाला, इन उपरोक्त परिणामों से युक्त प्राणी तेजलेश्या के परिणामवाला होता है । .०२१७ केवलिणोद्धनिरुद्धजोगस्स ( केवलिनोऽर्धनिरोधजोगस्स)
-ठाण स्था ४ाउ १।सू.टीका में उद्धत निर्वाण के समय तेरहवें गुणस्थान में काय योग का अर्ध निरोध ।
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