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( २२ ) जो संशी पर्याप्त जीव अल्प प्रकृति बन्ध तथा उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है उसको उत्कृष्ट मन, वचन, काय योग का कर्ता या 'उत्कृष्ट योग' कहा गया है ।। .०५५ उकस्सजोगट्ठाणजीवे ( उत्कृष्टयोगस्थानजीव)
-घट • खं ४, २, ४।सू २८ाटीका।पु १०।पृ. ६८ उत्कृष्ट योगस्थान में बरतने वाले जीव ।
पुणो जवमझ पडिरासिय तत्थ एगपक्खेवे अवणिदे तदणंतरजोगट्ठाणजीवपमाणं होदि । तं पडिरासिय बिदियपक्खेवे अवणिदे तदणंतरउवरिमजोगट्ठाणजीवपमाणं होदि। एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सजोगट्ठाणजीवे।
( यवमध्य में सबसे अधिक जीवों की सत्ता रहती है ) यवमध्य को प्रति राशि में उसमें से एक प्रक्षेप के कम करने पर उससे आगे के योगस्थान के जीवों का प्रमाण सिद्ध होता है। उसको प्रतिराशि में विभाजित कर उसमें से द्वितीय प्रक्षेप के कम करने पर उससे ऊपर के योगस्थान के जीवों का प्रमाण होता है। इस प्रकार विभाजित करते जाने पर अन्त में प्राप्त होनेवाला जीव प्रमाण --उत्कृष्टयोगस्थानजीव । .०५६ उक्कस्सजोगकाले ( उत्कृष्टयोगकाल )
-षट० ख० ४, २।सू १० टीकापु १०० ३६ योग का उत्कृष्ट काल ।
उक्कस्सजोगकाले आउए बंधाविदे जहण्णजोगेण आउयं बंधमाणस्स णाणावरणक्खयादो असंखेज्जगुणदव्वक्खयदंसणादो।
आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि के अनुसार यद्यपि आयुबन्ध जघन्य योग के द्वारा होता है।
__ जघन्य योग के द्वारा आयु बाँधने वाले जीव के जो ज्ञानावरणीय द्रव्य का जो क्षय होता है, उसमें बाधक- उत्कृष्टयोगकाल । .०५७ उक्कस्साई जोगट्ठाणाई ( उत्कृष्ट योगस्थान)
-षट • रत्नं ४, १।सू ७१।टीका।पृ ।पृ. ३४३ उत्कृष्ट-उत्तम योगस्थान ।
कम्मइयस्स उक्कस्सपरिसादणकदी कस्स ? जो जीवो तीससागरोधमकोडाकोडीओ बेहि सागरोवमसहस्सेहि य ऊणियाओ बादरेसु अच्छिदो, तम्हि x y x बहुसो उक्कस्साई जोगट्ठाणाई गदो, xxx तदो उवढिदो बादरतसेसु उवषण्णो।
कामण शरीर की उत्कृष्ट परिशातन कृप्ति करनेवाला जीव दो हजार सागरोपम से कम तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम काल तक बादर जीवों में रहता है तथा वहाँ से बादरत्रस में उत्पन्न होने के कतिपय कारणों में एक कारण उत्कृष्ट योगस्थानों को प्राप्त करना ।
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