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अपने गुणस्थान को छोड़कर अन्य गुणस्थान में गये हुए जीव का पुनः पूर्व गुणस्थान को प्राप्त करने में आवश्यक ----योगान्तरगमन । ०९७ जोगद्धाणं ( योगाद्धा)
-षट • खं १,८ । सू ११६ । टीका । पृ ५ । पृ० २६२ योग का अद्धा अर्थात काल ।
जोगद्धाणं समासंकादूण तेण सामण्णशसिमोपहिय अप्पिदजोगद्धाए गुणिदे इच्छिद-इच्छिदरासीओ होति ।
जिस अपेक्षित योगकाल से गुणा करनेपर इच्छित सयोगी जीवों की राशि का शान होना वह सामान्य जीवों की राशि का भागफल रूप है और उसका भागहार है-योगाद्धा अर्थात् सभी योगों का कालमान । '०९८ जोगपञ्चओ ( योगप्रत्यय) -षट • खं ३ । सू ६ । टीका । पु८। पृ. २१ योगप्रत्यय अर्थात् कर्मबन्ध का एक कारण विशेण ।
जोगपञ्चओ तिविहो मण-वचि-कायभेएण । योग भी कर्गबन्ध का एक कारण है अतः कर्म प्रकृतियों के बन्ध-प्रकरण में कई प्रत्ययों में योगप्रत्यय भी कहा गया है। •०९९ जोईसरं (योगेश्वर, युगीश्वर)
-ध्याश• गा १ मन, वचन और काय के उत्कृष्ट व्यापार वाला।
वीरं सुक्कझाणग्गिदड्ढकम्भिधणं पणमिऊणं ।
जोईसरं सरणं झाणजमायणं पवक्खामि ।। टीका-xxx 'योगेश्वरं योगीश्वरं वा' तत्र युज्यन्ते इति योगा:मनोवाकायव्यापारलक्षणाः तैरीश्वरः-प्रधानस्तं, तथाहि-अनुत्तरा एष भगवतो मनोवाक्कायव्यापारा इति x x xi
मन, वचन और काय के उत्कृष्ट व्यापार तथा शुक्ल ध्यान रूपी अग्नि से कर्मरूप ईन्धन को जिन्होंने दग्ध कर दिया है उनको योगेर अथवा योगीश्वर कहा गया है । .०१०० जोगक्खेमं ( योगक्षेम )
-उत्त० अ७गा २४, अप्राप्त की प्राप्ति तथा प्राप्त की रक्षा के उपाय ।
कुसग्गमेत्ता इमे कामा सन्निरुद्ध मि आउए ।
कस्स हेउपुराकाउ' जोगक्खेमं न संघिदे॥ .०१०१ जोगक्खेम ( योगक्षेम)
-नाया०१५ .०१०२ जोग-गुणंतरसंकंतीए ( योग-गुणान्तरसंक्रान्ति )
'-षट • खं १।६।सू १६० टीकापु पृ० ८६ Jain Education international
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