________________
( ३२ ) - जीव के गुणहानि का प्रमाण आगम के अनुसार युक्तियुक्त योगस्थान के घरम गुणहानि रूप होता है। .०९३ जोगहाणजीया ( योगस्थानजीष) .
-षट • खं ४,२, ४ । सूत्र २८ । टीका । पृ १० । पृ• ६६ विभिन्न योगस्थानों में रहनेवाले जीव ।
संपहि अणंतरोषणिधाए अवहिदभागहारो रूवाहियभागहारो रूबूणभागहारो छेदभागहारो त्ति एदेहि चदुहि भागहारेहि जोगहाणजीवा उप्पाएदवा।
अनन्तरोपतिधा के आधार पर अवस्थित भागहार, रूपाधिक भागहार, रूपोन भागहार तथा छेद भागहार-इन चार भागहारों के द्वारा निष्पन्न संख्या प्रमाणयोगस्थानजीव। •०९४ जोगाणा ( योगस्थान)
-गोक० गा २१८ योग-मन, वचन काया-इनका स्थान ।
जोगट्ठाणा तिविहा उववादेयं तवड्ढिपरिणामा।
भेदा एकेक्कंपि चोहसभेदा पुणो तिविढा ।। जीवसमास १४ होते हैं और ये सभी सामान्य, जघन्य और उत्कृष्ट के भेद से तीनतीन प्रकार के हैं । इस प्रकार इनके ४२ भेद होते है -ये सभी योगस्थान है, क्योंकि सर्वत्र योग वर्तमान रहता है। ०९५ जोगजषमज्मस्स ( योगयवमध्य)
-षट• खं ४,२, ४ । सू २८ । पु १० । पृ०५७ योग रूप जौ का मध्य भाग।
एवं संलरिदूण त्थोवावसेसे जीविव्वए त्ति जोगजधमज्झस्सुवरिमंतोमुहुत्तमच्छिदो।
टीका-xxx जोगे चेव जवो, तस्स मन्मं जयममं अट्ठसमध्यजोगट्ठाणाणि त्ति उत्तं होदि।
आठ समयवर्ती योगस्थान-योगयवमध्य ।
योगयवमध्य एक कालमान है । '०९६ जोगंतरगमणेण ( योगान्तरगमन)
-षट• खं १ । ६ । सू १५३ । टीका । पु ५ । पृ० ८७ एक योग से दूसरे योग में गमन करना।
टीका-गुणंतरं गवस्स जीपस्स जोगंतरगमणेण विणा पुणो भागमणाभाषादो।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org