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( ४ ) .०१३८ तग्गयजोगो (तत्कृतयोग ) ।
-----ध्याश• गा १६ जिसके योग समाहित हो गये हैं वह ।
तत्तोऽणुप्पेहाओ लेस्सा लिंगं फलं च नाऊणं ।
धम्म झाइज मुणी तग्गयजोगो तो सुक्क । टीका-xxx 'धर्म्यम्' इति धर्मध्यानं ध्यायेन्मुनिरिति, 'तत्कृतयोगः' धर्मध्यानकृताभ्यासः, ततः पश्चात् शुक्लध्यानमिति x xx।
जिसने योगों को समाहित कर धर्म ध्यान करने की समुचित अवस्था को प्राप्त कर लिया है, वह तत्कृतयोग।
तत्कृतयोग होने के बाद शुक्लध्यान का अधिकारी माना जाता है। .०१३९ तदुभयजोगेण ( तदुभययोग) -सूय• श्र १ अ १।नि गा २० दो योगों का सहयोग।
अक्खरगुणमतिसंघायणाए, कम्मपडिसाडणाए य।
तदुभयजोगेण कयं, सुत्तमिणं तेण सूत्तकडं ॥ टीका-xxx 'तदृभययोगेने' ति अक्षरगुणमतिसंघटनायोगेन कर्मपरिशाटनायोगेन च, यदि वा वाग्योगेन मनोयोगेन च कृतमिदं सूत्रं तेन सूत्रकृतमिति ।
सूत्र-प्रणयन में सहायभूत अक्षरों के गुण और मति का संघटन रूप वाग्योग तथा कर्म-परिशाटन रूप मनोयोग-तदुभययोग । .०१४० तप्पाओग्गमसंखेजगुणजोग (तत्प्रायोग्य असंख्यातगुणयोग)
-षट • खं ४, २, ४ासू १२२।टीका।पु १० पृ० ३७६ जीव के द्वारा प्रयोग में लाये जाने योग्य असंख्यातगुना योगद्रव्य ।
xxx परमाणुत्तरादिकमेण दव्वं बड्ढाधियजोगोषड्ढावेवो आषतप्पाओग्गमसंखेजगुणजोगं पत्तोत्ति ।
___ परमाणु द्रव्ययोग से आरम्भ कर क्रमशः बढ़ाते जाने पर प्रयोजन योग्य द्रव्ययोग का प्राप्त होना-तत्प्रायोग्य असंख्यातगुणयोग । .०१४१ तप्पामोग्गुक्कस्सजोगट्ठाणेहि ( तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योगस्थान)
-षट• खं ४, २, ४/सू ४७/टीकापु १०।पृ० २५७ उसके योग्य उत्कृष्ट योगस्थान ।
xxx एदेण समऊणुक्कस्सबंधगद्धामेत्तकालं तप्पाओग्गुक्कस्सजोगट्ठा. णेहि बंधिय एगसमयं दुपक्खेऊणजोगट्ठाणेण बंधिय पयदट्ठाणे ठिदो सरिसो।
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