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जोगेहि बंधिय एगसमयं पुव्वणिरुद्धजोगादो रूकविगलपक्खेवभागहारमेत्तजोगहाणाणि ओसरिदूण बंधिय हिदो च सरिसो।
कोई जीव उसके योग्य उत्कृष्ट योग और उत्कृष्ट बंधक काल के द्वारा आयुष्य बांधकर जलचरों में उत्पन्न हो कदलीघात कर एक समय कम उत्कृष्ट बन्धक काल पर्यन्त पूर्व निरुद्ध योगों से बाँधनेवाला तथा एक समय पूर्व निरुद्ध योग से एक कम विकल प्रक्षेपक भागहार प्रमाण योगस्थान उतरकर आयुष्य बाँधकर स्थित रहनेवाला जीव योगस्थान की अपेक्षा से तुल्य हैं। •०१६८ पुवुद्दिट्ठजोगेण ( पूर्वोद्दिष्टयोग)
-षट ० खं ४, २, ४। सू ४७।टीका।पु १०/पृ० २५६ पूर्व में प्रयोग किये गये योग।
समऊणुकस्सबंधगद्धाए तप्पाओग्गुक्कस्सजोगेण बंधिय एगसमयं पक्खेऊणजोगेण बंधिय जलचरेसुप्पजिय कदलीघादं कादूण परभषिआउयं पुवुहिट्ठजोगेण बंधिय जो बंधगद्धाचरिमे समए ठिदो सो सरिसो।
एक समय न्यून उत्कृष्ट बंधक काल के भीतर उसके योग्य उत्कृष्ट योग से आयुष्य बाँधनेवाला तथा एक समय तक एक प्रक्षेप कम योग द्वारा बाँधकर जलचरों में उत्पन्न होकर व कदलीघात करके परभव के आयुष्य को पूर्वोद्दिष्ट योग के द्वारा बाँधकर बंधक काल के अन्तिम समय में स्थित रहने वाला जीव योगस्थान की अपेक्षा से सदृश है । '०१६९ भावणाजोगसुद्धप्पा (भावनायोगशुद्धात्मा)-सूय श्र १अ १५।गा ५ सम्यक् प्राणधान रूप भावना योग के द्वारा पवित्र आत्मा ।
भावणाजोगसुद्धप्पा, जले पावा व आहिया।
नावा व तीरसंपन्ना, सव्वदुक्खा तिउट्टा ॥ टीका-सम्यक्प्रणिधानलक्षणो भावनायोगस्तेन शुद्ध आत्मा-अन्तरात्मा यस्य स तथा, स च भावनायोगशुद्धात्मा सन् परित्यक्तसंसारस्वभावो नौरिष जलोपर्यवतिष्ठते संसारोदन्वत इति,xxx।
जिस प्रकार नाव जल में रहकर भी जल के ऊपर ही रहती है, उसी प्रकार संसार में रहते हुए भी भावना की पवित्रता से आत्मलीन भाव में रहकर संसार-सागर को पार करने के जिस साधक ने सांसारिक स्वभाव को छोड़ दिया है वह-भावनायोगशुद्धात्मा। ०१७० भिण्णजोगो ( भिन्नयोग) -षट• खं १, सासू ३।टीका।पु ५। पृ० २४५
भिन्नयोग अर्थात असमान कर्म-कषाय धारण करने वाले जीव ।
उवसंतकसायस्ल कसाउवसामगाणं च पञ्चासत्तीए अभावस्स संदंसणफलो। जेसिं पञ्चासत्ती अस्थि तेसिमेगजोगो, इदरेसिभिण्णजोगो होदि x x x।
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