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टीका - संजमजोगविसन्ना मरंति जे तं वलायमरणंतु । इंदियविसयवसगया मरंति जे तं वसतु ॥
संयम योग से निवृत होकर, परिषहादि के बाधित होने से वलायमरण है । ०१९८ सजोगिभवत्थ केवलणाणे ( सयोगिभवस्थ केवलज्ञान )
- ठाण० स्था २ । १ । सू ८६ । पृ० ५०६
योगयुक्त अवस्था में होनेवाला केवलज्ञान । मूल - भवत्य केवलणाणे दुबिहे पण्णत्ते, तं जहा - सयोगिभवत्थकेवलणाणे x x × ।
टीका- 'भवत्थे' त्यादि सह योगेः - कायव्यापारादिभिर्यः स सयोगी इन्समासान्तत्वात् स वासौ भवस्थश्च तस्य केवलज्ञानमिति विग्रहः ।
मन, वचन, काय के व्यापार के साथ बरतनेवाले भवस्थ मनुष्य में होनेवाला एक ज्ञान-सयोगिभवस्थकेवलज्ञान ।
०१९९ सजोगी केवली ( सयोगी केवली )
मन, वचन, और काय के व्यापार से युक्त केवलज्ञानी ।
मूल - कम्मविसोहिमग्गणं पडुश्च वउद्दस जीवद्वाणा पण्णत्ता, तंजहामिच्छदिट्ठी x x x सयोगी केवली X × × !
सम० सम १४ । सू ५ | पृ० ४१
टीका - सयोगी केवली - मनः प्रभृतिव्यापारवान् केवलज्ञानीति ।
कर्म - विशोधन के द्वारा होनेवाले जीव के चौदह स्थान — गुणस्थान होते हैं, उनमें तेरहवाँ गुणस्थान — सयोगी केवली ।
• ०२०० संजमजोगयं ( संयमयोगज )
संयम रूप योग - आचरण ।
तवं चिमं संजमजोगयं च सज्झायजोगं च सया अहिट्ठए । सूरे व सेणाए समत्तमाउहे अलमप्पणो होइ अलं परेसिं ॥
टीका - 'समयोगं व' पृथिव्यादिविषयं संयमव्यापारं च ।
• ०२०१ सजोगाजोगा ( सयोगायोग )
योगयुक्त तथा योगरहित साधक ।
जीवकाय, इन्द्रिय तथा मन के संयम के प्रति समाचरण करना - जागरूक रहनासंयमयोग कहा जाता है ।
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- दसवे० अ८ । गा ६१
एएश्चिय पुग्वाणं पुग्बधरा सुप्पसत्यसंघयणा । दोण्ह सजोगाजोगा सुकाण पराण केवलिणो ॥
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- ध्याश० गा ६४
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