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०१५१ पओगगती (प्रयोगगति) -पण्ण• प १६ । सू १०८५ । पृ० २६८
प्रयोग- योग के अनुसार गमन करना।
कतिषिहे णं भंते ! गतिपन्याए पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा-पओगगती ?x xx
टीका-'प्रयोगगति' रित्यादि, प्रयोगः प्रागुक्तः पञ्चदशविधः स एव गतिः, इयं देशान्तरप्राप्तिलक्षण द्रष्टव्या, सत्यमनाप्रभृतिपुद्गलानां जीवेन व्यापार्यमाणानां यथायोगमल्पबहुदेशान्तरगमनात् ?
पन्द्रह प्रकार की प्रयोग गतियों में सत्यमन प्रभृति के पुद्गलों का जीव के साथ व्यापृत होकर यथायोग अल्प या बहुत देशान्तर में गमन करना-प्रयोगगति । '०१५२ पओगगती (प्रयोगगति ) --पण्ण० प १६ । सू १०८६ । पृ• २६८
प्रयोग -मन-वचन-काय के व्यापार रूप गति अर्थात् देशान्तर की प्राप्ति ।
मूल-से किं तं पओगगती? पओगगती पण्णरसविहा पण्णत्ता। तंजहा-सञ्चमणप्पओगगती एवं जहा पओगो भणिओ तहा एसा वि भाणियव्वा जाप कम्मासरीरकायप्पओगगती ।
टीका-'प्रयोगगति' रित्यादि, प्रयोगः प्रागुक्तः पञ्चदशषिधः स एष गतिः प्रयोगगतिः, इयं देशान्तर प्राप्तिलक्षणा द्रष्टव्या, सत्यमनःप्रभृतिपुद्गलानां जीवेन व्यापार्यमाणानां यथायोगमल्पबहुदेशान्तरगमनात् ।
__ जीव के द्वारा ब्यापृत होकर सत्यमनः प्रभृति पुद्गलों का यथायोग अल्प या अधिक देशान्तर को प्राप्त करना-प्रयोगगति ।
प्रयोगगति भी प्रयोग के अनुसार १५ प्रकार की होती है । ०१५३ पक्खेवुत्तरजोगेण ( प्रक्षेपोत्तरयोग)
-षट् खं ४, २, ४।सू १२२।टीकापु १०।पृ० ३६२ एक प्रक्षेप अधिक योग का मान ।
पढमगोवुच्छ वड्ढिदूण द्विदणारगबिदियसमयदव्वस्सुवरि परमाणुत्तरादिकमेण एगधिगलपक्खेवं पड्ढिदूण हिदणेरइओ च, अण्णेगो पक्खेवुत्तरजोगेण बंधिदूणागदो च, सरिसा।
यहाँ प्रकरण सादृश्य का है। प्रथम गोपुच्छ बढ़कर स्थित नारकी के द्वितीय समय सम्बन्धी द्रव्य के ऊपर एक परमाणु अधिक आदि के क्रम से एक विकल प्रक्षेप बढ़कर स्थित नारकी और दूसरा एक प्रक्षेप अधिक योग द्वारा आयु को बाँधकर आया हुआ नारकी-दोनों योग की अपेक्षा से सदृश है ।
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