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जीव का योगान्तर और गुणान्तर में संक्रमण ।
मूल-ओरालिय मिस्सकायजोगीसुमिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणेगजीवं पडुश्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं।
टीका-तम्हि जोग-गुणंतर संकंतीए अभावादो।
औदारिक मिश्रकाययोग के धारक मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों की निरन्तरता में बाधक योग गुणान्तरसंक्रान्ति । .०१०३ जोगट्ठाणद्धाणं ( योगस्थानाध्यान )
__-षट • खं ४, २, ४।सू १२२ टीकापु १०।पृ० ३६२ प्रक्षेप के आधार पर गुणहानि द्वारा योगस्थान प्राप्त करने का कालमान ।
रूवणदिवड्ढगुणहाणिमेत्तसयलपक्खेवाणं जदि दिवद्वगुणहाणिमेत्तजोगट्टाणद्धाणं लगभदि तो दिवढगुणहाणीय सगलपक्खेषभागहारे खंडिदे तत्थ एवखंडमेत्ते सु सगलपक्खेवेसु किं लभाभो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओषट्टिदाएलद्ध जोगट्ठाणद्धाणं होदि।
एक कम डेढ़ गुणहानि मात्र सकल प्रक्षेपों का यदि डेढ़ गुणहानि मात्र योगस्थानाध्यान प्राप्त होता है तो डेढ़ गुणहानि द्वारा सकल प्रक्षेप के भागहार को खण्डित करने पर उसमें से एक खण्ड मात्र सकल प्रक्षेपों में कितना योगस्थानाध्वान प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाण से फलगुणित इच्छा को अपवर्तित करने पर जो भागफल प्राप्त होता है, वह मान है योगस्थानाध्वान का। .०१०४ जोगधारासंचारो ( योगधारासंचार)
-घट • खं ४, २, ४ सू १४४ाटीका।पु १. पृ० ३६६ योग का धारावाहिक संचार ।।
एत्थ जोगस्स थोव-बहुत्ते अवगदे खविद-गुणिदकम्मं सियाणं जोगधारासंचारो णादु सकिनदि xxx।
योग के अल्प-बहुत्व के द्वारा क्षपित कर्मी शिक और गुणित कर्मा शिक का जानने योग्य योग सम्बन्धी विचार---योगधारा संचार । .०१०५ जोगनिमित्तं ( योगनिमित्त)
-भग० श १।उ ३प्र १२७ जिस कार्य का निमित्त योग हो।
कहणं भंते ! जीवा कंखामोहणिज्ज कम्मं बंधंति ? गोयमा ! पमादपश्चया, जोगनिमित्तं च।
टीका – 'जोगनिमित्तं च योगा मनःप्रभृतिव्यापाराः ते निमित्तं हेतुयंत्र
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