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--प्रवसा गा १२६७
( २६ ) तिण्णिसंजलण-पुरिसवेदाणं जहण्णओ पदेससंकमो कस्स ? उघसामयस्स अपच्छिमसमयपबद्ध घोलमाणजहण्णजोगेण बद्ध अपच्छिमसंकामयंतस्स अहण्ण पदेससंकमो।
__उपशामक तीन संज्वलन पुरुषवेद के जघन्य प्रदेश संक्रमण में कारण भूत अन्तिम समय प्रबद्ध कर्म का संक्रमण होना है, उसके बन्ध का कारण-घोटमान जघन्य योग है। ०८२ चउजोगजुभं (चतुर्योगयुग) चार भावों की सन्धि ।
दुगयोगो सिद्धाणं केवलिसंसारियाण तियजोगो।
यउजोगजुरं चउसुवि गईसु मणुयाण पणजोगो॥ टीका-- xxx पञ्चसु चतुष्कसंयोगेषु मध्ये चतुर्योगयुगं-चतुःसंयोगभङ्गद्वयं चतसृष्वपि गतिषु संभवति, तथाहि-औपमिकसम्यग्दृष्टेरौदयिकौपशमिकक्षायोपशमिकपारिणामिकभावचतुष्टयनिष्पन्नस्तृतीयो भङ्गा, क्षायिकसन्यग्दृष्टेस्तु औदयिकः क्षायिकः क्षायोपशमिकः पारिणामिक इत्येवंरूपश्चतुर्थो भङ्गश्चतसृष्वपि गतिषु प्राप्यत इति ।।
चतुष्क संयोग पाँच होते है जिनमें दो भंग तो चारों गतियों में प्राप्त होते है, यथा
उपशम सम्यग्दृष्टि में औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक भावो के संयोग को चतुर्योगयुक् कहते है । और
क्षायिक समग्दृष्टि में औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक भावों के संयोग को चतुर्योगयुक् कहते हैं । '०८३ चरिमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे (चरमसमयअयोगिभवस्थकेवलज्ञान)
-ठाणा० स्था २ ।उ१। सू६१।पृ ५०८ योगरहित अवस्था के अन्तिम समय में होनेवाला केवलज्ञान ।
मूल-अजोगिभवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णते, तं जहा- xxxi अहवा-चरिमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव,xxx।
टीका-न सन्ति योगा यस्य स न योगीति वा योऽसावयोगी-xx x 'अथवे' त्यादि, चरमः- अन्त्यः समयो यस्य सयोग्यवस्थायाः स तथा, xxx 'एव' मिति सयोगिसूत्रवत्प्रथमाप्रथमचरमावरमविशेषणयुक्तमयोगिसूत्रमपि पाव्यमिति ।
जिसके मन आदि के व्यापार नहीं है अथवा जो मन आदि का व्यापार नहीं करता
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