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( 60 ) योग निरोधात्मक ध्यान में मनोयोग व वचनयोग नहीं होते है सिर्फ काययोग होता है। परन्तु काययोग के बिना भी योग निरोधात्मक ध्यान हो सकता है।
प्रवृत्ति मात्र योग जन्य है। योग की उत्पत्ति द्वन्द्वात्मक है। नाम कर्म के उदय और अंतराय कर्म के क्षय, क्षयोपशम से योग की उत्पत्ति होती है। शुभ योग में मोहनीय कर्म का अनुदन ( उपशम, क्षय, क्षयोपशम ) और जुड़ जाता है । जब योग स्वयं द्वन्द्वात्मक है तो उसकी निष्पत्ति भी द्वन्द्वात्मक है। उदय भाव से पुण्य का बंधन तथा क्षयक्षयोपशम व उपशम से निर्जरा होती है । मन, वचन, काययोग से बंधनेवाले शुभ कम-पुण्य रूप है। संयमी के सावध योग का सर्वथा त्याग होता है। उसका खाना-पीना आदि समस्त क्रियाएँ निरवद्य है शुभयोग रूप है। शुभयोग मात्र पुण्यबंध का हेत है तथा शुभयोग से निर्जरा भी होती है । शुभयोग से पुण्य का बंध तथा निर्जरा होना माना है ।
शुभ लेश्या, शुभ योग से आकर्षित कर्मवर्गणा शुभ रूप से परिणत हो जाती है। अशुभ लेश्या, अशुभ योग से आकर्षित कर्मवर्गणा अशुभ रूप से परिणत हो जाती है। शुभता-अशुभता ग्रहण की हुई हर कर्मवर्गणा में विद्यमान है। जिस रूप में कर्म बंधते है, उतने समय विशेष के लिए तदनुरूप कर्मवर्गणा शुभ-अशुभ फल देने वाली हो जाती है। अतः कर्मवर्गणा के पुदगल स्कंध अलग-तलग नहीं है। जिस प्रवृत्ति से कम बंधते है, वे उसके अनुरूप बन जाते हैं ।
शुभयोग से पहले पुण्यबंध तथा निर्जरा बाद में होती है। उपशम भाव मोह की सम्पूर्ण अनुदय अवस्था है। उसमें योग केवल शुभ ही होंगे, अशुभ नहीं! जहाँ शुभयोग है वहाँ निर्जरा है। इस दृष्टि से उपशम भाव को निर्जरा में सहयोगी माना है।
२३ अप्रमत्त अवस्था में योग जन्य केवल पुण्य का बंध होता है।
५४ युगलिये में ११ योग होते हैं, ४ मन के, ४ वचन के, औदारिक, औदारिकमिश्र, कार्मणकाय योग।
६७ उपयोग के बिना योग हो सकता है-जैसे चौहदवे युगस्थान में, सिद्ध में उपयोग है परन्तु योग नहीं है।
८३ योग के द्वारा होने वाली क्रिया को करण कहते हैं। उसके तीन प्रकार हैकरना, कराना व अनुमोदन करना । आचार्यों ने कहीं-कहीं योग को भी करण कहा है।
८७ प्रतिसंलीनता तप के चार भेदों में एक भेद योग प्रतिसलीनता है। मन, वचन-काय के योग को अन्तर्मुखी वनाना है-योग प्रतिसंलीनता है।
योग निरोध को ध्यान कहा जाता है इस परिभाषा से ध्यान के तीन प्रकार होते है-मानसिक, वाचिक व कायिक । मिथ्यात्वी के तपस्या मोहकम के क्षयोपशम से होती है। यह काय का शुभ योग है । तपस्या एक योग आत्मा है।
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