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तिविहे करणे इत्यादि x x x क्रियते येन तत्करणं मननादिक्रिय प्रवर्तमानस्यात्मन उपकरणभूतस्तथा तथा परिणामवत्पुद्गल स्वभाव इतिभावः xxx1
-ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १२५ टीका योग-आत्मपरिणाम।
--भग श २० । उ ३ । सू १ धार्मिक क्रिया-कलापों में व्यापृत होना धर्म योग है। धर्म योग अर्थात् धार्मिक क्रिया-कलापों में व्याप्त होना । .०४ सविशेषण-ससमास-सप्रत्यय 'जोग' शब्द की परिभाषा .०१ अकुसलजोगनिरोहो ( अकुशलयोगनिरोध) -ओघ• भाष्य गा १६७ मन आदि की अशुभ प्रवृत्तियों को रोकना।।
इंदियविसयनिरोहो पत्तेसुवि रागदोसनिग्गहणं ।
अकुसलजोगनिरोहो कुसलोदय एगभावो वा॥ टीका-'अकुसलजोगनिरोहो' अकुशलानाम्-अशोभनानां मनोवाकाय. योगानां-व्यापाराणांयो निरोधः सा त्रिविधकरणायुक्तता x x x |
__ मन, वचन और काय-इन तीनों के अयुक्त अर्थात् संयम-विरोधी कार्यकलापों को रोकना-अकुशलयोगनिरोध । .०२ अचरिमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे ( अचरमसमयअयोगिभषस्थकेवलज्ञान)
-ठाणा० स्था राउ रासू ६१पृ० ५०७ अन्त समय से पूर्व योगरहित मनुष्य का होनेवाला केवलज्ञान ।
मूल-अजोगिभवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-xxx । अहवा- x x x अचरिमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव ।
-टीका-न सन्ति योगा यस्य स न योगीति वा योऽसावयोगीxxx 'अथवे'-त्यादि, वरमः-अन्त्यः समयो यस्य सयोग्यवस्थायाः स तथा, xxx ‘एवं' मिति सयोगिसूत्रवत्प्रथमाप्रथमचरमाचरमविशेषणयुक्तमयोगिसूत्रमपि वाच्यम् |
जिसके मन आदि के व्यापार नहीं है अथवा जो मन आदि का व्यापार नहीं करता उस भवस्थ मनुष्य का अन्तिम समय से पूर्व होनेवाला केवलज्ञान-अचरमसमयअयोगिभवस्थकेवलज्ञान।
.०३ अचरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे (अचरमसमयसयोगिभवस्थकेषल
-ठाणा स्था राउ |सू ६०1० ५०६ अन्त्य समय से पूर्व सयोगि अवस्था में होनेवाला केवलज्ञान ।
ज्ञान)
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