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.०१५ अजोगिठाणं ( अयोगिस्थान)
-गोक• गा ४६४ योगरहित स्थान अर्थात् अयोगिकेवली गुणस्थान । तिसु तेरं दस मिस्से णव सत्तसु छट्टयम्मि एक्कारा। जोगिम्मि सत्त जोगा अजोगिठाणं हवे सुण्णं ॥
जहाँ पर योग की सत्ता शून्य हो जाय वह-अयोगिस्थान अर्थात् अयोगिकेवली गुणस्थान। .०१६ अणाभियोगिएसु-अणाभिओगिएसु ( अणाभियौगिक)
-भग० श ३।उ ५/प्र २२.पृ. १६६ अभियोग-विकुर्वणा से रहित देवों का एक वर्ग विशेष ।
मूल-अमायी णं भंते ! तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कते कालं करेइ, xxx अण्णयरेसु अणाभियोगिएसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जइ ।
टीका-तत्र चाभियोगोऽपि विकुर्वणा इति मन्तव्यम् ।
मायारहित आलोचना-प्रतिक्रमण कर काल करने वाले साधुओं का परभव के उत्पत्ति स्थान में देवों का वर्ग विशेष अनाभियौगिक ।
अच्युतकल्प से ऊपर के देव अनाभियौगिक कहलाते हैं । .०१७ अणुवीइसमितिजोगेण ( अनुवीतिसमययोग)
-पण्हा. अ ७ाद्वार २ सू १७.पृ०६६१ वचन बोलते समय संयम रूप योग-व्यापार ।
मूल - पढम-सोऊण संवर? परमट्ट x xx समिक्खितं संजतेण कालम्मि य वत्तव्वं । एवं अणुवीइसमितिजोगेण भाविओ भवति अंतरप्पा xxx सञ्चजवसंपण्णो ।
टीका-समीक्षितं.पूर्व बुद्ध या पर्यालोचितं. एतादृशं संयमवता-साधुना काले-अवसरे वक्तव्यं नाऽन्यथा । एवममुना प्रकारेण अनुचिन्त्य-पर्यालोच्य भाषणरूपया समित्या सम्यग् योगयुक्तो भवति अन्तरात्मा-जीवः ।
अन्तरात्मा को भावित करने में एक कारणभूत, सुनी हुई बात के लिए भी संयमपूर्वक पूर्णरूपेण सोचकर साधु का समयानुसार भाषा का प्रयोग करनाअनुवीतिसमितियोग। .०१८ अणेयजोगंधराण ( अनेकयोगधर ) ---सूय० अ अ १।निगा १६ अनेक प्रकार के योग-चेष्टाओं का धारक ।
पइजोगेण पभासियमणेगजोगंधराण साहणं । तो षयजोगेण कयं जीवस्स सभाषियगुणेण ॥
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