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तिबिहे करणेxxx।
टीका-xxx योगप्रयोगकरणशब्दानां मनः प्रभृतिकमभिधेयतया योगप्रयोगकरणसूत्रेष्वभिहितमिति नार्थभेदोऽन्वेषणीयः, त्रयाणामप्येषामेकार्थतया आगमे बहुशः प्रवृत्तिदर्शनात्, तथाहि-योगः पञ्जदशविध शतकादिषु व्याख्यातः, प्रज्ञापनायां त्वेवमेवायं प्रयोगशब्देनोक्तः, तथाहि-“कतिविहे गं भंते ! पओगे पन्नत्ते, गोयमा ! पन्नरसविहे” इत्यादि, तथा आवश्यकेऽयमेव करणतयोक्तः, तथाहि-"झुंजणकरणं तिविहं मणवतिकाए य मणसि सञ्चाइ । सट्ठाणे तेसि भेओ चउ चउहा सत्तहा चेव ॥१॥” इति ।।
-ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १२४ 'जोग' के पर्यायवाची शब्द---
वीरिय ( वीर्य ), थाम (स्थाम ), उच्छाह ( उत्साह ), परक्कम ( पराक्रम ), चेठा ( चेष्टा ) सत्ती ( शक्ति ), सामत्थय ( सामर्थ्य ), पओग (प्रयोग) और करण (करण)। .३.०१ पीरिय (वीर्य)
xxx सकरणस्यैव त्रिस्थानकावतारित्वाद् अतस्तत्रैव व्युत्पत्तिस्तमेव चाश्रित्य सूत्रव्याख्या, युज्यते जीवः कर्मभिर्येन 'कम्म जोगनिमित्तं बाई' त्ति वचनात् युङ क्ते प्रयुङक्तेयं पर्यायं स योगो-वीर्यान्तरायक्षयोपशमजनितो जीवपरिणामविशेष इति, आह व-"मणसा वयसा कारणा पावि जुत्तस्स बिरियपरिणामो। जीवस्स अप्पणिज्जो स जोगसन्नो जिणक्खाओ |॥॥ तेओजोगेण जहा रत्तत्ताई घडल्स परिणामो। जीवकरणप्पओगे विरियमपि तहप्पपरिणामो॥" इति xxx
___ठाण--स्था ३ । उ १ । सू १२४ । टीका वीर्य के दो ( अकरण-सकरण ) भेदों में सकरण वीर्य योग का पर्यायवाची है ।
जिसके द्वारा जीव कर्मों से युक्त होता है-वह योग है तथा वह योग वीर्यान्तराय के क्षय तथा उपशमजनित जीवपरिणाम विशेष है।
मन, वचन तथा काय-इन तीनों में से किसी से युक्त जीव के जो स्वकीय आत्म सम्बन्धी वीर्य परिणाम है उनको तीर्थ'करों ने 'योग' कहा है। जिस प्रकार अग्नि के संयोग से घट में रक्त आदि परिणाम होते हैं उसी प्रकार करण प्रयोग करने पर वीयं भी जीव का आत्मपरिणाम होता है। •०३०२ थाम (स्थाम) -पाइअ० ०३.०३ उच्छाह ( उत्साह)
xxx शक्तिरुत्साहःx xx -सिद्ध अ६ । सू६ । पृ० १६४ शक्ति और उत्साह एकार्थवाची शब्द हैं ।
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