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तुम्हें शत शत बन्दन मतिमान् ।
(१) अपने अथक यत्नके बल पर, की उन्नति बाधाएं सह शर, बने विरोधी भी अनुयायी
आज तुम्हें पहिचान ।।
(४) रहा सदा यह ध्येय तुम्हारा, बनें समाज विवेकी सारा, क्रिया काण्ड अरु कुरीतियां सब
हो जायें निष्प्राण ॥
(५)
संस्था सागर के निर्माता, आत्म तत्व के अनुपम ज्ञाता, है अगाध पाण्डित्य तुम्हारातुम गुरुवर्य महान् ॥
(३)
जैनागम के वृद्ध पुजारी, हैं सेवाएं अमूल्य तुम्हारी, कैसे हो सकते हम ऊऋण कर किञ्चित् गुणगान ॥
(६) फिर भी हम सब होकर प्रमुदित, करते श्रद्धाञ्जली समर्पित, करो इन्हें स्वीकार; तपस्वी !
हो तुमसे उत्थान ॥
तुमने ज्ञान प्रसार किया है, विद्वानों को जन्म दिया है,
दूर विवादों कलहों से रह__ किया आत्म कल्याण ।
रुड़की]--
(शास्त्री) धरर्णन्द्रकुमार 'कुमुद
तेईस