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१९०
१९२ १९३
- चौबीस - व्रत व शील के अतिचारों की संख्या तथा नाम-निर्देश
अहिंसावत के अतिचार १८७, सत्यव्रत के अतिचार १८७, अस्तेयव्रत के अतिचार १८७, ब्रह्मचर्यव्रत के अतिचार १८८, अपरिग्रहवत के अतिचार १८८, दिग्विरमणव्रत के अतिचार १८८, देशावकाशिकव्रत के अतिचार १८९, अनर्थदंडविरमणव्रत के अतिचार १८९, सामायिकव्रत के अतिचार १८९, पौषधव्रत के अतिचार १८९, भोगोपभोगवत के अतिचार १९०, अतिथिसंविभागवत के
अतिचार १९०, संलेखनाव्रत के अतिचार १९० दान तथा उसकी विशेषता
८.बन्ध बन्धहेतुओं का निर्देश बन्धहेतओं को व्याख्या
मिथ्यात्व १९३, अविरति, प्रमाद १९३, कषाय, योग १९४ बन्ध का स्वरूप बन्ध के प्रकार मूलप्रकृति-भेदों का नामनिर्देश उत्तरप्रकृति-भेदों की संख्या और नामनिर्देश
ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म की प्रकृतियाँ १९७, वेदनीय कर्म की प्रकृतियाँ १९८, दर्शनमोहनीय कर्म की
प्रकृतियाँ १९८ चारित्रमोहनीय कर्म को पच्चीस प्रकृतियां
सोलह कषाय १९८, नौ नोकषाय १९९, आयुष्कर्म के चार
प्रकार १९९ नामकर्म की बयालीस प्रकृतियाँ
चौदह पिण्डप्रकृतियाँ १९९, सदशक और स्थावरदशक १९९, आठ प्रत्येकप्रकृतियाँ २००, गोत्रकर्म की दो
प्रकृतियाँ २००, अन्तरायकर्म की पाँच प्रकृतियाँ २०० स्थितिबन्ध अनुभावबन्ध
अनुभाव और उसका बन्ध २०२, अनुभाव का फल २०२,
फलोदय के बाद मुक्त कर्म की दशा २०३ प्रदेशबन्ध
१९४ १९४ १९५
१९८
२०१ २०१
२०३
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