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- तेईस - अधिकरण के भेद आठ प्रकार के साम्परायिक कर्मों में से प्रत्येक के भिन्नभिन्न बन्धहेतु
ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्मो के बन्धहेतु १५८, असातावेदनीय कर्म के बन्धहेतु १५९, सातावेदनीय कर्म के बन्धहेतु १६०, दर्शनमोहनीय कर्म के बन्धहेतु १६०, चारित्रमोहनीय कर्म के बन्धहेतु १६१, नरक-आयु कर्म के बन्धहेतु १६१, तिर्यञ्च-आयु कर्म के बन्धहेतु १६१, मनुष्य-आयु कर्म के बन्धहेतु १६१, उक्त तीनों आयु कर्मों के सामान्य बन्धहेतु १६१, देव-आयु कर्म के बन्धहेतु ५६२, अशुभ एवं शुभ नामकर्म के बन्धहेतु १६२, तीर्थंकर नामकर्म के बन्धहेतु १६२, नीच गोत्रकर्म के बन्धहेतु १६३, उच्च गोत्रकर्म के बन्धहेतु १६३, अन्तराय कर्म के बन्धहेतु १६३, सांपरायिक कर्मों के आस्रव के विषय में विशेष वक्तव्य १६३
७. व्रत व्रत का स्वरूप व्रत के भेद व्रतों की भावनाएँ
भावनाओं का स्पष्टीकरण १६९ कई अन्य भावनाएं हिंसा का स्वरूप असत्य का स्वरूप चोरी का स्वरूप अब्रह्म का स्वरूप परिग्रह का स्वरूप यथार्थ व्रती की प्राथमिक योग्यता व्रती के भेद अगारी व्रती
पाँच अणुव्रत १८१, तीन गुणव्रत १८२, चार शिक्षाव्रत
१८२, संलेखना १८२ सम्यग्दर्शन के अतिचार
१६६ १६८ १६८
१७० १७२ १७६ १७७ १७७ १७८
१७२
१८० १८०
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