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- इक्कीस -
४. देवलोक देवों के प्रकार तृतीय निकाय को लेश्या चार निकायों के भेद चतुनिकाय के अवान्तर भेद इन्द्रों की संख्या प्रथम दो निकायों में लेश्या देवों का कामसुख चतुनिकाय के देवों के भेद
भवनपति १००, व्यन्तरों के भेद-प्रभेद १०१, पञ्चविध ज्योतिष्क १०१, चरज्योतिष्क १०२, कालविभाग १०२,
स्थिरज्योतिष्क १०३, वैमानिक देव १०३ देवों की उत्तरोत्तर अधिकता और हीनता विषयक बातें
स्थिति १०४, प्रभाव १०४, सुख और द्युति १०५, लेश्याविशुद्धि १०५, इन्द्रियविषय १०५, अवधिविषय १०५, गति १०५, शरीर १०६, परिग्रह १०६, अभिमान १०६, उच्छ्वास १०६, आहार १०६, वेदना १०७, उपपात
१०७, अनुभाव १०७ वैमानिकों में लेश्या कल्पों की परिगणना लोकान्तिक देव अनुत्तर विमानों के देवों को विशेषता तिर्यञ्चों का स्वरूप अधिकार-सूत्र भवनपतिनिकाय की उत्कृष्ट स्थिति वैमानिकों को उत्कृष्ट स्थिति वैमानिकों की जघन्य स्थिति नारकों को जघन्य स्थिति भवनपतियों को जघन्य स्थिति व्यन्तरों की स्थिति ज्योतिष्कों की स्थिति
५. अजीव अजीव के भेद
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