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श्रमण सूक्त
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अज्जए पज्जए वा वि
बप्पो चुल्लपि उ ति य। माउलत भाइणेज्ज त्ति
पुत्ते नत्तुणिय त्ति य।। हे हो हले ति अन्ने त्ति
भट्टा सामिय गोमिए। होल गोल वसुले त्ति
पुरिसं नेवमालवे।। नामधेज्जेण णं बूया
पुरिसगोत्तेण वा पुणो। जहारिहमभिगिज्झ आलवेज्ज लवेज्ज वा।।
(उत्त ७ : १८, १६, २०) है आर्यक । हि दादा | हे नाना ।), हे प्रार्यक ! (हे परदादा! हे परनाना". हे पिता! हे चाचा, हे मामा । हे भानजा!, हे पुत्र । हे पौत्र, हे हल । हे अन्न । हे भट्ट |, हे स्वामिन् । हे गोमिन् ! हे होल ।, हे गोल ! हे वृपलइस प्रकार पुरुष को आमत्रित न करे। किन्तु (प्रयोजनवश) यथायोग्य गुण-दोष का विचार कर एक बार या बार-बार उन्हे उनके नाम या गोत्र से आमंत्रित करे।
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