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श्रमण सूक्त
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(३२८
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मयेसु बभगुत्तीसु
भिक्खुधम्ममि दसविहे। जे भिक्खू जयई निच्च से न अच्छइ मडले।।
(उत्त ३१
१०)
जो भिक्षु आठ मद-स्थानो मे, ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियो मे और दस प्रकार के भिक्षु-धर्म मे सदा यत्न करता है, वह ससार मे नहीं रहता।
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