Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 484
________________ श्रमण सूक्त । ३४५ इहेवधम्मो अयसो अकित्ती दुन्नामधेज्ज च पिहुज्जणम्मि। चुयस्स धम्माउ अहम्मसेविणो सभिन्नवित्तस्स य हेट्टओ गई ।। (द चू १: १३) धर्म से च्युत, अधर्म-सेवी और चारित्र का खण्डन करने वाले साधु की अधोगति होती है। धर्म से भ्रष्ट साधु का इस लोक मे अयश, अकीर्ति और साधारण लोगो मे भी दुर्नाम होता है। % ३४६ एक्को वि पावाइ विवज्जयतो विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो। (द चू २ १० ग, घ) निपुण साथी न मिले तो पाप-कर्मों का वर्जन करता हुआ काम-भोगो मे अनासक्त रह मुनि अकेला ही विहार करे। । - ४७८

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