Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 487
________________ - - श्रमण सूक्त - ३५५ सावज्जे गिहवासे अणवज्जे परियाए। (द चू १, सू १ १३) गृहवास सावध है और मुनि-पर्याय अनवद्य। ३५६ विवित्ताइ सयणासणाइ सेविज्जा, से निग्गथे। नो इत्थी पसुपडगससत्ताइ सयणासणाइ सेवित्ता हवइ से निग्गथे। (उत्त १६ ३) जो एकांत शयन और आसन का सेवन करता है, वह निर्ग्रन्थ है। निर्ग्रन्थ स्त्री, पशु और नपुंसक से आकीर्ण शयन और आसन का सेवन नहीं करता। ३५७ नो इत्थीण कह कहित्ता हवइ, से निग्गथे। (उत्त १६ ४) जो केवल स्त्रियो के बीच कथा नहीं करता वह निर्ग्रन्थ है -

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