Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 489
________________ - ३६१ नो पुवरय पुनकीलिय अणुसरित्ता हवइ, से निग्गथे। (उत्त १६ ८) जो गृहवास मे की हुई रति और क्रीडा का अनुस्मरण नहीं करता, वह निर्ग्रन्थ है। ३६२ नो पणीय आहार आहारित्ता हवइ, से निग्गथे। (उत्त. १६:६) जो प्रणीत आहार का सेवन नहीं करता. वह निर्ग्रन्थ है। PRAMPAR ३६३ नो अइमायाए पाणमोयणं आहारेत्ता हवइ, से निग्गथे। (उत्त १६ १०) जो मात्रा से अधिक नहीं पीता और नहीं खाता, वह निर्ग्रन्थ है।

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