Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 483
________________ ३४३ अमरोवम जाणिय सोक्खमुत्तम रयाण परियाए तहारयाण। निरओवम जाणिय दुक्खमुत्तम रमेज्ज तम्हा परियाय पडिए।। (द चू १ ११) चरित्र-पर्याय में रत मनुष्यो का सुख देवता के समान । उत्तम समझकर तथा उसमे अननुरक्त मनुष्य का दुख नरक के समान तीव्र जानकर पण्डित मुनि चरित्र-पर्याय मे रमण करे। ३४४ धम्माउ भट्ठ सिरिओ ववेय जन्नग्गि विज्झायमिव प्पतेय। हीलति ण दुविहिय कुसीला दादुद्धिय घोरविस व नाग।। (द चू १ १२) धर्म से भ्रष्ट, आचार-रहित, दुर्विहित साधु की निन्दनीय आचार वाले लोग भी वैसे ही निन्दा करते हैं जैसे साधारण लोग अल्प-तेज बुझती हुई यज्ञाग्नि एव दाढ निकले हुए घोर विषधर सर्प की। ४७७ . - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490