Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 481
________________ अर ३३६ अप्पोवही कलहविवज्ज्णा य विहारचरिया इसिण पसत्था। (द चू २ ५ ग, घ) उपकरणो की अल्पता ओर कलह का वर्जन-यह विहारचर्या (जीवन-चर्या) ऋषियो के लिए प्रशस्त है। . ३३७ गिहिणो वेयावडिय न कुज्जा। (द चू २ ६ क) साधु गृहस्थ का वैयापृत्य न करे।। - ३३८ - अभिवायण वदण पूयण च। (द चू २ ६ ख) साधु गृहस्थ का अभिवादन, वन्दन और पूजन न करे। ३३६ असकिलिडेहि सम वसेज्जा मुणी चरित्तस्स जओ न हाणी। (द चू २ ६ ग, घ) मुनि सक्लेश-रहित (राग-द्वेष रहित) साधुओ के साथ । रहे जिससे चरित्र की हानि न हो। - -- - - ४७५ - - -

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