Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 480
________________ श्रमण सूक्त ३३३ कारण वाया अदु माणसेण तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिद्विजासि । (द चू १ १८ ग, घ ) मुमुक्षु, त्रिगुप्तियो ( मन, वचन और काया से) गुप्त होकर जिनवाणी का आश्रय ले । ३३४ चरिया गुणा य नियमा य होति साहूण दवव्वा । (द चू २ ४ ग, घ ) मे वाले तथा नियमो की ओर दृष्टिपात करना चाहिए । ३३५ अणिएयवासो समुयाणचरिया अन्नायउछ पइरिक्कया य । ४७४ चर्चा, पुणो (द चू २ ५ क, ख ) अनिकेतवास, समुदान-चर्या, अज्ञात कुलो से भिक्षा, एकान्तवास - यह विहार चर्या मुनियो के लिए प्रशस्त है ।

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