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श्रमण सूक्त
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श्रमण सूक्त (३५७
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जलधन्ननिस्सिया जीवा
पुढवीकट्टनिस्सिया। हम्मति भत्तपाणेसु तम्हा भिक्खू न पायए।।
(उत्त ३५ ११)
भक्त और पान के पकवाने मे जल और धान्य के आश्रित तथा पृथ्वी और काष्ठ के आश्रित जीवो का हनन होता है, इसलिए भिक्षु न पकवाए।
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३५६