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श्रमण सूक्त
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३१४ नो वि पए न पयावए जे स भिक्खू ।
(द १० ४ घ) जो स्वय न पकाता है और न दूसरो से पकवाता है-वह भिक्षु है।
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३१५ होही अट्ठो सुए परे वा त न निहे न निहावए जे स भिक्खू ।
(द १० ८ ग, घ) आहार को प्राप्त कर यह कल या परसो काम आएगा-इस विचार से जो सन्निधि (सचय) न करता है और न करवाता है-वह भिक्षु है।
३१६ छदिय साहम्मियाण भुजे।
(द १० ६ ग) साधु अपने साधर्मिको को निमत्रित कर भोजन करता
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३१७ भोच्चा सज्झायरए य जे स भिक्खू।
(द १० ६ घ) जो भोजन कर चुकने पर स्वाध्याय मे रत रहता है-वह । भिक्षु है।
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