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श्रमण सूक्त
३१०
अगणिसत्थ जहा सुनिसिय
त न जले न जलावए जे स भिक्खू ।
(द १० २ ग, घ )
जो शस्त्र के समान सुतीक्ष्ण अग्नि को न जलाता है और न जलवाता है - वह भिक्षु है ।
३११
अनिलेण न वीए न वीयावए ।
(द. १०. ३ क )
साधु पखे आदि से हवा न करता है और न करवाता है।
३१२
हरियाणि न छिंदे न छिदावए ।
(द. १० : ३ ख )
साधु हरित का न छेदन करता है और न करवाता है।
३१३
बीयाणि सया विवज्जयतो
सच्चित्त नाहारए जे स भिक्खू ।
४६७
(द १० ३ ग, घ )
जो बीजो का सदा विवर्जन करता है, जो सचित्त का आहार नहीं करता - वह भिक्षु है ।