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श्रमण सूक्त
३०३
अणुसासिज्जतो सुस्सूसइ ।
(द ६ (४) सू ३ (१))
शिष्य आचार्य द्वारा अनुशासित किये जाने पर उसे सुनता है। यह विनय-समाधि है ।
३०४
सम्म पडिवज्जइ ।
(द ६ (४) सू ३ (२))
शिष्य अनुशासन को सम्यक् रूप से स्वीकार करता है। यह विनय-समाधि है ।
३०५
वेयमाराहयइ |
४६५
(द १ (४) सू ३ (३))
शिष्य वेद (ज्ञान) की आराधना करता है । यह विनय
समाधि है ।