Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 475
________________ श्रमण सूक्त ३१८ न सरीर चाभिकखई जे स भिक्खू । (द १० १२ घ ) जो शरीर की भी आकाक्षा नहीं करता - वह भिक्षु है । ३१६ असइ वोसद्वचत्तदेहे । (द १० १३ क ) साधु बार-बार देह का व्युत्सर्ग और त्याग करता है । ३२० विइत्तु जाइमरण महब्भय तवे रए सामणिए जे स भिक्खू । (द १० १४ ग, घ ) जो जन्म-मरण को महामय जानकर तप और श्रामण्य मे रत रहता है - वह भिक्षु है । ३२१ सुत्तत्थ च वियाणई जे स भिक्खू (द १० १५ घ) जो सूत्र और अर्थ को अच्छी तरह जानता है-वह भिक्षु है | ४६६

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