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श्रमण सूक्त
३०० अलोलुए अक्कुहए अमाई अकोउहल्ले य सया स पुज्जो।
(द ६ (३) १० क. घ) जो आहार और देहादि मे आसक्त नहीं होता, चमत्कार प्रदर्शित नहीं करता, माया नहीं करता, कुतूहल नहीं करता, वह पूज्य है।
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३०१
अपिसुणे यावि अदीणवित्ती।
(द ६ (३) १० ख) जो चुगली नहीं करता, दीनवृत्ति नहीं होता, वह पूज्य है।
३०२ ते माणए माणरिहे तवस्सी जिइदिए सच्चरए स पुज्जो।
(द ६ (३) १३ ग, घ) जो आचार्य अपने शिष्यो को योग्य मार्ग मे स्थापित करते हैं उन माननीय, तपस्वी, जितेन्द्रिय और सत्यरत आचार्य का जो सम्मान करता है, वह पूज्य है।
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