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श्रमण सूक्त
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२६३ आलोइय इगियमेव नच्चा जो छन्दमाराहयइ स पुज्जो।
(द ६ (३) १ ग, घ) जो आचार्य के आलोकित और इगित को जानकर उसके अभिप्राय की आराधना करता है, वह पूज्य है।
२६४ आयारमट्टा विणय पउजे।
(द ६ (३) २ क) आचार के लिए विनय का प्रयोग करे।
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ર૬ गुरु तु नासाययई स पुज्जो।
(द ६ (३) २ घ) जो गुरु की आशातना नहीं करता, वह पूज्य है।
२६६ राइणिएसु विणय पउजे डहरा वि य जे परियायजेठा।
(द ६ (३) ३ क. ख) जो अल्पवयस्क होने पर भी दीक्षा मे ज्येष्ठ होते हैं-उन पूजनीय साधुओ के साथ विनयपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।