Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 466
________________ श्रम - - सुस्सूसए आयरियप्पमत्तो। (द ६ (१) १७ ख) शिष्य आचार्य की अप्रमत्त भाव से शुश्रूषा करे। २८७ आराहइत्ताण गुणे अणेगे से पावई सिद्धिमणुत्तर। (द६ (१) १७ ग, घ) आचार्य की शुश्रूषा करने से वह अनेक गुणो की आराधना कर अनुत्तर सिद्धि को प्राप्त करता है। રાક जेण कित्ति सुयं सिग्घ निस्सेस चाभिगच्छई। (द ६ (२) २ ग, घ) विनय के द्वारा मुनि कीर्ति, श्लाघनीय श्रुत और समस्त इष्ट तत्त्वो को प्राप्त होता है। - २८६ आयरिया ज वए भिक्खू तम्हा त नाइवत्तए। (द ६ (२) १६ ग, घ) इसलिए आचार्य जो कहे भिक्षु उसका उल्लघन न करे। ४६० - -

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