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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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૨૦૦ सुत्त व सीह पडिबोहएज्जा एसोवमासायणया गुरुण!
(द ६ (१) ८ ख, घ) मानो कोई सोए हुए सिंह को जगाता है. गुरु की आशातना करने वाले पर यह उपमा लागू होती है।
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जो वा दए सत्तिअग्गे पहार एसोवमासायणया गुरूण।
(द ६ (१) : ८ ग, घ) ___ मानो कोई भाले की नोक पर प्रहार करता है, गुरु की आशातना करने वाले पर यह उपमा लागू होती है।
રદર सिया हु सीसेण गिरि पि भिदे न यावि मोक्खो गुरुहीलणए।
(द ६ (१). ६ क, घ) कदाचित् कोई सिर से पर्वत को भी भेद डाले, पर गुरु की अवहेलना से मोक्ष सम्भव नहीं।
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