Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 463
________________ श्रमण सूक्तं २७७ आसीविसो वा कुविओ न भक्खे न यात्रि मोक्खो गुरुहीलणाए । (द ६ (१) ७ ख. घ) कदाचित् आशीविषं सर्प कुपित होने पर भी न उसे, पर गुरु की अवहेलना से मोक्ष सम्भव नहीं । २७८ सिया विस हलाहल न मारे न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए । (द ६ (१) ७ ग, घ) कदाचित् हलाहल विष न मारे, पर गुरु की अवहेलना से मोक्ष सम्भव नहीं । २७६ जो पव्वय सिरसा भेत्तुमिच्छे, एसोवमासायणया गुरूण । ४५७ (द ६ (१) ८ क, घ) मानो कोई सिर से पर्वत का भेदन करने की इच्छा करता है, यह उपमा गुरु की आशातना करने वाले पर लागू होती है।

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