Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 472
________________ श्रमण सूक्त ND ३०६ जाइमरणाओ मुच्चई इत्थ च चयइ सव्वसो। (द ६ (४) ७ क, ख) सुविशुद्ध और सुसमाहित चित्त वाला साधु जन्म-मरण से मुक्त होता है तथा नरक आदि अवस्थाओ को पूर्णत त्याग देता है। ३०७ %3 perma सिद्धे वा भवइ सासए देवे वा अप्परए महिड्ढिए। (द ६ (४) ७ ग, घ) इस प्रकार वह या तो शाश्वत सिद्ध होता है अथवा अल्प-कर्म वाला महर्द्धिक देव होता है। ३०८ पुढवि न खणे न खणावए। (द १० २ क) साधु पृथ्वी का खनन नहीं करता और न करवाता है। ३०६ सीओदग न पिए न पियावए। (द १० २ ख) साधु शीतोदक सचित्त जल न पीता है और न पिलाता - -

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