Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 465
________________ श्रमण सूक्त २८३ सिया हु सीहो कुविओ न भक्खे न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए । (द ६ (१) ६ ख, घ) कदाचित् सिह कुपित होने पर भी न खाए पर गुरु की अवहेलना से मोक्ष सम्भव नहीं है । २८४ सिया न भिदेज्ज व सत्तिअग्ग न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए । (द ६ (१) ६ ग, घ ) कदाचित् भाले की नोक भेदन न करे, पर गुरु की अवहेलना से कदापि मोक्ष सम्भव नहीं है। २८५ जे मे गुरू सययमणुसासयति ते ह गुरू सयय पूययामि । ४५६ (द ६ (१) १३ ग, घ ) जो गुरु मुझे लज्जा, दया, संयम और ब्रह्मचर्य की सतत शिक्षा देते हैं, उनकी मैं सतत पूजा करता हूं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490