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श्रमण सूक्त
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ર૬૭ ओवावयं वक्ककरे स पुज्जो।
(द ६ (३) ३ घ) जो गुरु के कहने के अनुसार करता है, वह पूज्य है।
२६८ अन्नायउछ चरई विसुद्ध जवणट्ठया समुयाण च निच्च।
(द६ (३) ४ क, ख) साधु जीवन-यापन के लिए सदा अपना परिचय न देते हुए विशुद्ध उञ्छ की सामुदायिक रूप से चर्या करता है।
२६६ अलद्धय नो परिदेवएज्जा लद्ध न विकत्थयई स पुज्जो।
(द ६ (३) ४ ग, घ) जो भिक्षा न मिलने पर खिन्न नहीं होता और मिलने पर श्लाघा नहीं करता, वह पूज्य है।
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