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श्रमण सूक्त
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उच्चारभूमिसपन्न इत्थीपसुविवज्जिय।
(द ८ ५१ ग, घ) मुनि का स्थान मल-मूत्र विसर्जन की भूमि से युक्त और स्त्री-पशु से रहित होना चाहिए।
२६१ विवित्ता य भवे सेज्जा नारीण न लवे कह।
(द ८ ५२ क, ख) मुनि एकान्त स्थान हो वहा केवल स्त्रियो के बीच व्याख्यान न दे।
२६२ गिहिसथव न कुज्जा।
(द ८ ५२ ग) मुनि गृहस्थो के साथ परिचय न करे।
२६३ कुज्जा साहूहि सथव।
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(द ८
५२ घ)
मुमुक्षु साधुओ से ही परिचय करे।
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