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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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२६४ जाए सद्धाए निक्खतो तमेव अणुपालेज्जा।
(द ८ ६० क, ग) साघु ने जिस श्रद्धा से घर से निकलकर संयम ग्रहण ॥ किया, उसी श्रद्धा के साथ उसका पालन करे।
२६५ परियायवाणमुत्तम।
(द ८ ६० ख) प्रव्रज्या स्थान
२६६ गुणे आयरियसम्मए।
(द ८ ६० घ) मुनि आचार्य-सम्मत गुणो की आराधना मे सदा श्रद्धाशील
रहे।
२६७ हीलति मिच्छ पडिवज्जमाणा करेति आसायण ते गुरूण |
(द ६ (१) २ ग, घ) जो शिष्य (गुरु मदबुद्धि है, अल्पवयस्क है, अल्पश्रुत है, ऐसा समझ) उसके उपदेश को मिथ्या प्रतिपादित करते हुए उसकी अवहेलना करते हैं, वे गुरु की आशातना करते हैं।
प्रति विनय का भग
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