Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 460
________________ श्रमण सूक्त - २६८ - - पगईए मदा वि भवति एगे डहरा वि य जे सुयबुद्धोववेया। (द ६(9) ३ क, ख) कई आचार्य वृद्ध होते हुए भी प्रकृति से ही मन्द' होते हैं | और कई अल्पवयस्क होते हुए भी श्रुत और बुद्धि से सम्पन्न होते हैं। २६६ आयारमता गुणसुडिअप्पा जे हीलिया सिहिरिव भास कुज्जा। (द. ६ (१) ३ ग, घ) आचारवान् और गुणो से सुस्थितात्मा आचार्य (भले फिर वे मन्द हो या प्राज्ञ) अवहेलना प्राप्त होने पर गुण-राशि को उसी प्रकार भस्म कर डालते हैं जिस प्रकार अग्नि ईंधन-राशि को। २७० ये यावि नाग डहर ति नच्चा आसायए से अहियाय होइ। (द६ (१) ४ क, ख) सर्प छोटा है यह मान कर जो कोई उसकी आशातना' करता है, वह सर्प उसके अहित के लिए होता है। १ अल्प बुद्धि वाला (सत्प्रज्ञाविकल)। २ कदर्थना। % 3D - - - ४५४

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