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श्रमण सूक्त
१८८
वियडेणुप्पिलावए ।
(द ६ ६१ घ)
प्रासुक जल से स्नान करने वाला भिक्षु भी भूमि मे रहे हुए सूक्ष्म प्राणियो को जल से प्लावित करता है।
१८६ तम्हा ते न सिणायति सीएण उसिणेण वा ।
(द ६ ६२ क, ख )
इसलिए मुनि शीत या उष्ण जल से स्नान नहीं करता।
१६० जावज्जीव वय घोर असिणाणमहिगा ।
(द ६ ६२ ग, घ )
निर्ग्रन्थ जीवन भर घोर अस्नान व्रत का पालन करते हैं।
१६१
गायस्सुव्वट्टणट्टाए नायरति कयाइ वि ।
(द ६ ६३ ग, घ )
मुनि शरीर का उबटन करने के लिए गन्ध-चूर्ण, कल्क, लोध्र, पद्मकेसर आदि का प्रयोग नहीं करते।
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