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૧૬૬ सपयाईयमढे वा, त पि धीरो विवज्जए।
(द ७ ७ ग, घ) जो भाषा वर्तमान और अतीत से सम्बन्धित अर्थ के विषय मे शंकित हो, उसका भी धीर-पुरुष विवर्जन करे।
२०० निस्सकिय भवे ज तु, एवमेय ति निदिसे।
(द ७ १० ग, घ) जो अर्थ निशकित हो (उसके बारे मे ही) 'यह इस प्रकार ही है'-ऐसा कहे।
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२०१ वाहिय वा वि रोगि त्ति तेण चोरे त्ति नो वए।
(द ७ १२ ग, घ) रोगी को रोगी एव चोर को चौर नहीं कहना चाहिए।
२०२ दमए दुहए वा वि, नेव भासेज्ज पन्नव।
(द ७ १४ ग, घ) ओ द्रमक | ओ दुर्भगा-प्रज्ञावान् इस प्रकार न बोले।
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