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श्रमण सूक्त
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२३२ समुप्पेह तहाभूय नो ण सघट्टए मुणी।।
(द ८ ७ ग, घ) शरीर को तथाभूत (भीगा हुआ) देखकर उसका स्पर्श न करे।
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२३३ न उजेज्जा न घट्टेज्जा नो ण निव्वावए मुणी।।
(द ८ ८ ग, घ) मुनि अड्गार, अग्नि आदि को न प्रदीप्त करे, न स्पर्श करे और न बुझाए।
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२३४
न वीएज्ज अप्पणो काय बाहिर वा वि पोग्गल।।
(द ८ ६ ग, घ) मुनि वीजन, पत्र, शाखा या पंखे से अपने शरीर अथवा बाहरी पुद्गलो पर हवा न डाले।
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