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श्रमण सूक्त
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२४४ न य दिट्ट सुय सब भिक्खू अक्खाउमरिहइ।
(द ८ २० ग, घ) बहुत सुना जाता है, बहुत देखा जाता है। सब देखे और सुने को कहना भिक्षु के लिए उचित नहीं।
२४५ सुय वा जइ वा दिट्ठ न लवेज्जोवघाइय।
(द ८ २१ क, ख) सुना या देखा हुआ औपघातिक वचन साधु न कहे।
२४६ न य केणइ उवाएण गिहिजोग समायरे।।
(द ८ २१ ग, घ) साधु किसी उपाय से गृहस्थोचित कर्म का आचरण न करे।
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