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सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुछिन्ने सुहडे मडे। सुनिट्टिए सुलढे त्ति सावज्ज वज्जए मुणी।।
(द ७ ४१) बहुत अच्छा किया है, बहुत अच्छा पकाया है, शाक आदि को बहुत अच्छा छेदा है, (कडवास का) बहुत अच्छा हरण किया है, (घी आदि) बहुत अच्छा भरा है, बहुत अच्छा रस निष्पन्न हुआ है, बहुत ही इष्ट है-मुनि ऐसी सावध भाषा का वर्जन करे।
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अचक्कियमवत्तब अचित चेव नो वए।
(द ६ ४३ ग, घ)
यह वस्तु अभी बेचने योग्य नहीं है, इसका गुण-वर्णन नहीं किया जा सकता, वह अचिन्त्य है-साधु इस प्रकार न कहे।
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